नई दिल्ली। कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच देश में इस वक्त वैक्सीनेशन का काम जारी है। इस बीच नेसल वैक्सीन पर भी ट्रायल चल रहा है। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी नेसल वैक्सीन पर पहले चरण का ट्रायल कर रही है। अगर ट्रायल में सब ठीक रहता है तो देश में जल्द ही एक अन्य वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी।

कंपनी के फाउंडर और सीएमडी कृष्णा ऐल्ला ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि हमारा चरण 1 का परीक्षण चल रहा है, 8 मई की समय सीमा है। उन्होंने बताया कि भारत बायोटेक कोरोना के खिलाफ नाक के टीके लाने वाली पहली कंपनी हो सकती है। उन्होंने बताया कि वो Nasal vaccine पर डेटा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इंजेक्टेबल वैक्सीन केवल निचले फेफड़ों की सुरक्षा करती है। वह ऊपरी फेफड़ों और नाक की रक्षा नहीं करती है। हालांकि टीका लगाए गए लोगों को संक्रमण हो सकता है। लेकिन टीका आपको अस्पताल में भर्ती होने से रोकेगा। आपको 2-3 दिनों तक बुखार हो सकता है। लेकिन मृत्यु दर कम हो जाएगी।
बता दें कि नाक से दी जाने वाली ये वैक्सीन कोरोना पर अधिक कारगर साबित हो सकती है। इसमें सीरिंज और नीडल का इस्तेमाल नहीं होने के कारण इस वैक्सीन में खर्च भी कम ही आएगा।
नेजल वैक्सीन कोरोना संक्रमण रोकने में ज्यादा प्रभावी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वैक्सीन देने के तरीके और उसकी कार्यप्रणाली पर चर्चा करते हुए डॉ कृष्णा ने कहा, ‘नेजल वैक्सीन की एक डोज ही कोरोना संक्रमण को रोकने में सक्षम है। इस तरह नेजल वैक्सीन से कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ा जा सकता है औऱ तेजी से बढ़ रहे नए मामलों पर रोक लगाई जा सकती है. पोलियो ड्रॉप की तरह इसकी 4 बूंद ही काफी हैं. दो बूंद नाक के एक छेद में दो बूंद नाक दूसरे छेद में कोरोना से बचाव में कारगर भूमिका निभाएगी.’ उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी वैश्विक संस्थाएं भी सेकंड जेनरेशन बतौर नेजल वैक्सीन को लेकर संतुष्टि जाहिर कर रही हैं. उनके मुताबिक सुई से होने वाले टीकाकरण से संक्रमण नहीं रुकता. ऐसे में नेजल वैक्सीन को लेकर वैश्विक स्तर पर साझेदारी की जाएगी. ऐसा बॉयोटेक कंपनी की योजना है।
कोवैक्सिन 81 फीसदी तक प्रभावी
गौरतलब है कि मार्च में भारत बॉयोटेक ने कोवैक्सिन के तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजे सामने आए थे. भारत बॉयोटेक के मुताबिक कोवैक्सिन कोरोना को रोकने में 81 फीसदी तक प्रभावी आंकी गई थी. तीसरे चरण के ट्रायल के लिए 25,800 लोगों को शामिल किया गया था. भारत में इतने व्यापक स्तर पर इससे पहले कोई क्लीनिकल ट्रायल नहीं हुआ था. गौरतलब है कि डीजीसीआई ने 3 जनवरी को आपातकालीन स्थिति में कोवैक्सिन के इस्तेमाल की अनुमति दी थी. गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने कोवैक्सिन का उत्पादन बढ़ाने के लिए 1567.50 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं. इसके अलावा बेंगलुरु में प्लांट की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 65 करोड़ रुपए का अऩुदान अलग से दिया है. इस तरह जुलाई तक कोवैक्सिन की 6 से 7 करोड़ डोज हर माह उत्पादित की जा सकेंगी.